विसर्जन के बाद मिट्टी और पानी को गमले या पेड़-पौधों में डालें, ताकि पैर न लगे health

1 सितंबर यानी आज अनंत चतुर्दशी पर्व मनाया जा रहा है। 10 दिन तक गणेशजी की पूजा-अर्चना के बाद आज मूर्तियों को विसर्जित किया जाएगा। वैसे तो धार्मिक ग्रंथों में गणेशजी को विसर्जित करने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास जब महाभारत लिखने के लिए एक गुणी लेखक को ढूंढ रहे थे तो इस काम के लिए गणेशजी राजी हुए थे लेकिन उन्होंने शर्त भी रखी कि जब तक महर्षि बिना रुके बोलेंगे वे भी लगातार लिखते रहेंगे। वेदव्यास ने गणेश चतुर्थी के दिन से महाभारत की कथा सुनानी प्रारंभ की थी। गणेशजी लगातार 10 दिन तक कथा लिखते रहे।

अत्यधिक मेहनत से बढ़ा तापमान और स्नान के बाद मिली थी राहत
महर्षि वेदव्यास महाभारत की कथा सुनाते रहे और गणेश जी लिखते रहे। कथा पूरी होने पर महर्षि वेदव्यास ने आंखें खोली। उन्होंने देखा कि अत्यधिक मेहनत के कारण गणेशजी के शरीर का तापमान बढ़ा हुआ है। लगातार रात-दिन लेखन की वजह से गणेश जी के शरीर का तापमान बढ़ने लगा, तो वेद व्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगाकर भाद्र शुक्ल चतुर्थी को उनकी पूजा की। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेशजी का शरीर अकड़ गया। उनके शरीर का ताप भी बढ़ रहा है और मिट्टी झड़ रही है, तो वेद-व्यास ने गणेशजी को पानी में डाल दिया। महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों चला था और अनंत चौदस के दिन पूरा हुआ था। तभी से गणेश जी को घर में बैठाने की प्रथा चली आ रही है।

क्या है विसर्जन
विसर्जन संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है पानी में विलीन होना। ये सम्मान सूचक प्रक्रिया है इसलिए घर में पूजा के लिए प्रयोग की गई मूर्तियों को विसर्जित करके उन्हें सम्मान दिया जाता है। विसर्जन की क्रिया में मूर्ति पंचतत्व में मिल जाती है और देवी-देवता अपने मूल स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं।

इन बातों का रखें ध्यान
भगवान गणेश की मूर्ति को अपने आप ही गलने देना चाहिए। उसे जबरदस्ती हाथों से न दबाना नहीं चाहिए। इसके बाद प्रतिमा विसर्जन होने पर पानी और मिट्‌टी पर पैर न लगे इसके लिए गमले में डाल देना चाहिए। मूर्ति विसर्जन का पानी तुलसी के पौधे में नहीं डालें। उत्तर दिशा की ओर मुंहकर के गणेश प्रतिमा विसर्जन किया जाना चाहिए। वहीं, गणेश विसर्जन की पूजा में नीले और काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

लोकमान्य तिलक ने 126 साल पहले शुरू की थी परंपरा
ब्रिटिश काल में सांस्कृतिक या धार्मिक उत्सव सामूहिक रूप से मनाने पर रोक थी। ऐसे में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में सार्वजनिक तौर पर गणेश उत्सव मनाने की शुरुआत की थी। लोकमान्य ने पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनकी इस कोशिश ने स्वतंत्रता आंदोलन में लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। तिलक ने गणेशोत्सव को जो रूप दिया उससे भगवान गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए। गणेश पूजा को छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने का जरिया भी बनाया गया।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Ganesh Visarjan 2020: Ganpati Visarjan Vidhi importance and significance


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34Sfj78

Comments