16 संस्कारों में नौवां कर्णवेध संस्कार होता है। जब बच्चा छ महीने का हो जाता है उसके बाद 16 वें महीने तक कर्णवेध किया जा सकता है। यानी कान छिदवाए जा सकते हैं। ये स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए ये संस्कार बनाया गया है। अच्छी सेहत के नजरिये से इस संस्कार की परंपरा बनाई गई है। इसके पीछे ये मान्यता है कि सूर्य की किरणें कानों के छेद से शरीर में जाकर बच्चों को तेजस्वी बनाती है। कर्णवेध संस्कार करवाने से बच्चे बीमारियों से दूर रहते हैं।
एक्युपंक्चर विज्ञान के मुताबिक कान के जिससे हिस्से में छेद किया जाता है वहां एक्युपंक्चर पॉइंट होता है। जिससे सेहत अच्छी रहती है। वाराणसी के आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के चिकित्सा अधिकारी वैद्य प्रशांति मिश्रा के मुताबिक, कान छिदवाने से रिप्रोडक्टिव ऑर्गन हेल्दी रहते हैं। साथ ही इम्यून सिस्टम भी मजबूत बनता है।
घबराहट कम , मानसिक बीमारी से बचाव
वैज्ञानिक तथ्यों के मुताबिक माना जाता है कि जिस जगह कान छिदवाया जाता है वहां पर दो बहुत जरूरी एक्युपंक्चर प्वाइंट्स मौजूद होते हैं। पहला मास्टर सेंसोरियल और दूसरा मास्टर सेरेब्रल जो कि सुनने की क्षमता को बढ़ाते हैं। इस बारे में एक्यूपंक्चर में कहा गया है कि जब कान छिदवाते हैं तो इसका दबाव ओसीडी पर पड़ता है, जिसके कारण घबराहट कम होती है, वहीं कई तरह की मानसिक बीमारियां भी बचाव हो सकता है।
आंखों की रोशनी बढ़ती है और तनाव कम होता है
कान छिदवाने से आंखों की रोशनी तेज होती है। दरअसल, कान के निचले हिस्से में एक प्वाइंट होता है। इस प्वाइंट के पास से आंखों की नसे गुजरती हैं। जब कान के इस प्वाइंट को छिदवाते हैं तो इससे आंखों की रोशनी तेज होने में मदद मिलती है। कान के निचले हिस्से पर दबाव पड़ने से तनाव कम होता है। साथ ही दिमाग की अन्य परेशानियों से भी बचाव होता है।
पाचन क्रिया होती है दुरुस्त
कानों के निचले हिस्से का संबंध भूख लगने से होता है। कान छिदवाने से पाचन क्रिया भी दुरुस्त बनी रहती है। ऐसा करने से मोटापा कम होता है। माना जाता है कि कान छिदवाने से लकवा की बीमारी नहीं लगती है। वहीं कान छिदवाने से साफ सुनने में मदद भी मिलती है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2TygiCB
Comments
Post a Comment