समाज में अच्छाई तभी बढ़ सकती है, जब हम खुद अपनी बुराइयां छोड़ दें। हम सुधर जाएंगे तो समाज भी अच्छा हो जाएगा। किसी भी सुधार की शुरुआत खुद से करनी चाहिए। इस संबंध में गौतम बुद्ध से जुड़ा एक प्रसंग प्रचलित है। जानिए ये कथा...
प्रचलित प्रसंग के अनुसार बुद्ध एक बार किसी गांव में रुके। गांव के लोग उनके दर्शन करने और उपदेश सुनने पहुंच रहे थे। कुछ ही दिनों में काफी लोग बुद्ध के उपदेश सुनने आने लगे थे। एक दिन बुद्ध के पास एक महिला पहुंची। उसने बुद्ध से पूछा कि आप तो किसी राजकुमार की तरह दिखते हैं, आपने युवावस्था में ही संन्यास क्यों धारण किया है?
बुद्ध बोले, 'मैं तीन प्रश्नों के उत्तर जानना चाहता हूं। हमारा ये शरीर अभी युवा और आकर्षक है, लेकिन ये वृद्ध होगा, फिर बीमार होगा और अंत में मृत्यु हो जाएगी। मुझे वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्यु इन तीनों के कारण जानना थे। इसीलिए मैंने संन्यास धारण किया है।
बुद्ध की ये बातें सुनकर महिला बहुत प्रभावित हुई। उसने बुद्ध को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया। ये बात गांव के लोगों को मालूम हुई तो सभी ने बुद्ध से कहा कि वे उस स्त्री के घर न जाए, क्योंकि उसका चरित्र अच्छा नहीं है।
बुद्ध ने गांव के सरपंच से पूछा कि क्या गांव के लोग सही बोल रहे हैं?
सरपंच ने भी गांव के लोगों की बात में ही अपनी सहमति जताई। तब बुद्ध ने सरपंच का एक हाथ पकड़ कर कहा कि अब ताली बजाकर दिखाओ। इस पर सरपंच ने कहा कि यह तो संभव नहीं है, एक हाथ से ताली नहीं बज सकती है।
बुद्ध ने कहा, 'सही है। ठीक इसी तरह कोई महिला अकेले ही चरित्रहीन नहीं हो सकती। इस गांव के पुरुष चरित्रहीन नहीं होते तो वह महिला भी चरित्रहीन नहीं होती।'
ये बात सुनकर गांव के सभी पुरुष शर्मिदा हो गए। बुद्ध ने कहा कि अगर हम अच्छा समाज बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें खुद को सुधारना जरूरी है। अगर हम सुधर जाएंगे तो समाज भी बदल जाएगा। समाज की बुराई के लिए दूसरों को दोष देने से अच्छा है, हम खुद बुराइयों से बचें।
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